मिलेगी सजा कभी न बोलने की भी ! है सबसे आसान काम रह जाना चुप होकर उससे भी है आसान हो जाना चुप पूरी तरह देख लेना ! भूल ही जाएँगे सब किसी दिन ! होता क्या है बोलते रहना किसी भी तरह का पर याद रखना होगा हमें ठीक से यह भी कि मिलने वाली है सजा न बोलने की भी कभी छिन जाएगी आज़ादी जब हमेशा के ही लिए बोलने के लिए , बोलने की समूची आज़ादी ! पूछा भी जाएगा बचाव में अदालतों में हमसे जानते ही नहीं हो जब होता है क्या बोलना ! माँग ही रहे हो क्यों बोलना फिर इस समय ? लताड़ा भी जाए शायद
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अभी दो बोल रहे हैं , फिर सिर्फ़ एक की आवाज़ ही सुनाई देगी ! - श्रवण गर्ग हमारे अब तक के अनुभव यही रहे हैं कि जब - जब भी बाहरी ताक़तों की तरफ़ से देश की संप्रभुता पर आक्रमण हुआ है , समूचा विपक्ष अपने सारे मतभेदों को भूलकर तत्कालीन सरकारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो गया है। जिस चर्चित ‘ कारगिल युद्ध ‘ को लेकर हाल ही में विजय दिवस मनाया गया उसकी भी यही कहानी है।सम्पूर्ण भारत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व के साथ उठ खड़ा हुआ था।आश्चर्यजनक रूप से इस समय पिछले अनुभवों की सूची से कुछ भिन्न होता दिखाई पड़ रहा है। देश की सीमाओं पर पड़ोसी देश चीन की ओर से हस्तक्षेप और अतिक्रमण हुआ है , उससे निपटने को लेकर चल रही तैयारियाँ भी नभ - जल - थल पर स्पष्ट दिखाई दे रही हैं पर सरकार चीनी हस्तक्षेप को सार्वजनिक रूप से स्वीका