नया साल मुबारक ! सब ठीक तो है न ? - श्रवण गर्ग नए साल का स्वागत हमें ख़ुशियाँ मनाते हुए करना चाहिए या कि पीड़ा भरे अश्रुओं के साथ ? लोगों की याददाश्त में कोई भी साल इतना लंबा नहीं बीतता है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले ! इतना लम्बा कि उसके काले और घने साये आने वाली कई सुबहों तक पीछा नहीं छोड़ने वाले हों।याद करके रोना आ सकता है कि एक अरसा हुआ जब ईमानदारी के साथ हंसने या ख़ुश होकर तालियाँ बजाने का दिल हुआ होगा। यह जो उदासी छाई हुई है इस समय , हरेक जगह मौजूद है — दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों , कोनों और दिलों में। काफ़ी कुछ टूट या दरक चुका है। जिन जगहों पर बहुत ज़्यादा रोशनी होने का भ्रम हो रहा है हो सकता है वहाँ भी अंदर ही अंदर घुटता हुआ कोई अंधेरा मौजूद हो ! कई बार ऐसा होता है कि अंधेरों में जिंदगियाँ हासिल
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