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Showing posts from August, 2021
      //  एक   मुल्क   था   कभी   अफ़ग़ानिस्तान  ! //                        - श्रवण   गर्ग                                हैं   परेशान   इन   दिनों   बहुत   सारी   चीजों   को   लेकर   हम  ! मसलन  , क्या   करना   चाहिए   हमें - नहीं   बचे   जब   अपना   ही   देश   हमारे   पास  ! कहाँ   पहुँचना   चाहिए   तब   हमें  ? मसलन   कि   खड़े   हुए   हैं   हम   जिस   जगह   इस   बदहवास   शाम   के   वक्त हामिद   करजाई   हवाई   अड्डे   के   बाहर   मुल्क   का   होते   हुए   भी   जो   हमारा   छूट   गई   है   ज़मीन   जिसकी   अब   जिस्म   से   हमारे   क्या   करना   चाहिए   ऐसे   हालातों   में   हमें  ? या   मान   लीजिए   दिख   रहा   वह   जो   नन्हा - सा   बच्चा   उछाला   गया   है   जिसे   दीवार   पर   कसे   कँटीले   तारों   के   पास पहुँचने   के   लिए   एक   अनजान   सैनिक   के   हाथों   की   पकड़   में   और   वह   खून   आपका   है   जो   बस   उड़ने   ही   वाला   है   छोड़कर   आपको   किसी   ग़ैर   मुल्क   के   लिए   और   देख   पा   रहे   हैं   आप   उसे   बस   लटके   हुए   हवा   में   ही   भरी   हुई   आँखो
  स्मृति '  के   बहाने   विभाजन   के   दंश   को   स्थायी   बनाने   की   जुगत ! - श्रवण   गर्ग मेरे   पिछले   आलेख  ‘ विभाजन   की   विभीषिका   को   याद   करने   का   मकसद   क्या   है  ?’(21  अगस्त  )  को   लेकर   जो   प्रतिक्रियाएँ   प्राप्त हुईं  हैं   उनमें   कुछ   वाक़ई   परेशान   करने   वाली   हैं।   इन   प्रतिक्रियाओं   में   न   सिर्फ़   अगस्त  1947  के   विभाजन   की   विभीषिका   का   स्मरण   करने   की वकालत  ही   की   गई   है   और   बताया   गया   है   कि   किस   तरह   से   बहुसंख्यक   वर्ग   के   लोगों   के   साथ   तब   अत्याचार   हुए   थे ,  उससे   भी   आगे   जाकर वर्ष  1946  के  16  अगस्त   की   भी   याद   दिलाई   गई   है।   इस   दिन   कोलकाता  ( तब   कलकत्ता )  में   हुई   साम्प्रदायिक   विद्वेष   की  (‘ डायरेक्ट एक्शन   डे ’  के   रूप   में   जानी   जाने   वाली  )  घटना   की   हाल   के   सालों   में   कभी   कहीं   चर्चा   नहीं   की   गई   पर   अब   प्रचारित   की   जा   रही   है   यानी स्मृति  दिवस   मनाने   की   भूमिका   शायद  14  अगस्त   पर   ही   ख़त्म   नहीं   होने   व