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Showing posts from August, 2020
लोकतंत्र   के   लिए   ख़तरा   बनता  जा  रहा   है   सोशल   मीडिया  ? -श्रवण गर्ग देश में इस समय सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्स-फ़ेसबुक और व्हाट्सएप -आदि पर नागरिकों के जीवन में कथित तौर पर घृणा फैलाने और सत्ता-समर्थक शक्तियों से साँठ-गाँठ करके लोकतंत्र को कमज़ोर करने सम्बन्धी आरोपों को लेकर बहस भी चल रही है और चिंता भी व्यक्त की जा रही हैं। पर बात की शुरुआत किसी और देश में सोशल मीडिया की भूमिका से करते हैं: खबर हमसे ज़्यादा दूर नहीं और लगभग एकतंत्रीय शासन व्यवस्था वाले देश कम्बोडिया से जुड़ी है। प्रसिद्ध अमेरिकी अख़बार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की वेब साइट द्वारा जारी इस खबर का सम्बंध एक बौद्ध भिक्षु लुओन सोवाथ से है, जिन्होंने अपने जीवन के कई दशक कम्बोडियाई नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा की लड़ाई में गुज़ार दिए थे। अचानक ही सरकार समर्थक कर्मचारियों की मदद से बौद्ध भिक्षु के जीवन के सम्बंध में फ़ेसबुक के पेजों पर अश्लील क़िस्म के वीडियो पोस्ट कर दिए गए और उनके चरित्र को लेकर घृणित मीडिया मुहीम देश में चलने लगी। उसके बाद सरकारी नियंत्रण वाली एक परिषद द्वारा बौद्ध धर्म में वर्णित ब्रह्मचर्य के अनु
संकट की इस घड़ी में हम मीडिया के लोग अपने ही आईनों में अपने ही हर घड़ी बदलते हुए नक़ली चेहरों को देख रहे हैं. ये लोग किसी एक क्षण अपनी उपलब्धियों पर ताल और तालियाँ ठोकते हैं और अगले ही पल छातियाँ पीटते हुए नज़र आते हैं ! इस पर अब कोई विवाद नहीं रहा है कि मीडिया चाहे तो देश को किसी भी अनचाहे युद्ध के लिए तैयार कर सकता है या फिर किसी समुदाय विशेष के प्रति प्रायोजित तरीक़े से नफ़रत भी फ़ेला सकता है. किसी अपराधी को स्वच्छ छवि के साथ प्रस्तुत कर सकता है और चाहे तो निरपराधियों को मुजरिम बनवा सकता है. मुंबई की अदालत का ताज़ा फ़ैसला गवाह है। मीडिया की इस विशेषज्ञता को लेकर विदेशों में किताबें/उपन्यास लिखे जा चुके हैं जिनमें बताया गया है कि प्रतिस्पर्धियों से मुक़ाबले के लिए बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों के द्वारा किस तरह से अपराध की घटनाएँ स्वयं के द्वारा प्रायोजित कर उन्हें अपनी एक्सक्लूसिव ख़बरों के तौर पर पेश किया जाता है.  ताज़ा संदर्भ एक फ़िल्मी नायक की मौत को लेकर है. चैनलों के कुछ दस्ते युद्ध जैसी तैयारी के साथ नायक की महिला मित्र और कथित प्रेमिका को उसकी मौत के पीछे की मुख्य ‘खलनायिका’ घो
  कांग्रेस   का  ‘ कोरोना ’  संकट ,  छह   माह   में   टीके   की   उम्मीद  ! - श्रवण   गर्ग कांग्रेस   में   इस   समय   जो   कुछ   चल   रहा   है   क्या   उसे   लेकर   जनता   में   किसी   भी   तरह   की   उत्सुकता ,  भावुकता   या   बेचैनी   है  ?  उन   बचे - खुचे प्रदेशों   में   भी   जहां   वह   इस   समय   सत्ता   में   है  ?  केरल   के   उस   वायनाड   संसदीय   क्षेत्र   में   भी   जहां   से   राहुल   गांधी   चुने   गए   हैं  ?  उत्तर   प्रदेश   के रायबरेली   में   जहां   से   सोनिया   गांधी   विजयी   हुईं   हैं   और   अमेठी   जहां   से   राहुल   गांधी   हार   गए   थे  ?  या   फिर   देश   के   उन   विपक्षी   दलों   के   बीच जो  केंद्र   सरकार   के   ख़िलाफ़   नेतृत्व   के   लिए   कांग्रेस   की   तरफ़   ही   ताकते   रहते   हैं  ?  शायद   कहीं   भी   नहीं  !  कांग्रेस   के   दो   दर्जन   नेताओं   ने सोनिया  गांधी   को   चिट्ठी   लिखकर   माँग   उठाई   है   कि   पार्टी   में   अब   एक  ‘ पूर्ण   कालिक ’, ‘ सक्रिय ’ और  ‘ दिखाई   पड़ने   वाले ’  नेतृत्व   की   ज़रूरत आन  पड़ी   है।   कांग्रेस