त्वरित टिप्पणी : इस आंदोलन का ‘ महात्मा गांधी ’ कौन है ? - श्रवण गर्ग दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को अब कहाँ के लिए किस रूट पर आगे चलना चाहिए ? छह महीने के राशन - पानी और चलित चोके- चक्की की तैयारी के साथ राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पहुँचे किसान अपने धैर्य की पहली सरकारी परीक्षा में ही असफल हो गए हैं , क्या ऐसा मान लिया जाए ? लगभग टूटे हुए मनोबल और अनसोची हिंसा के अपराध - भाव से ग्रसित किसानों के पैर क्या अब एक फ़रवरी को संसद की तरफ़ उत्साह के साथ बढ़ पाएँगे ? या बढ़ने दिए जाएँगे ? जैसी कि आशंका थी , चीजें दिल्ली की फेरी लगाकर वापस सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े पहुँच गई हैं।सरकार के लिए ऐसा होना ज़रूरी भी हो गया था।दोनों पक्षों के बीच बातचीत की तारीख़ अब अदालत की तारीख़ों में बदल सकती है।तो आगे क्या होने वाला है ? सरकार ऊपरी त
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क्या ट्रम्प के हार जाने से हम वाक़ई परेशान हैं ? - श्रवण गर्ग अमेरिका में हुए उलट - फेर पर भारत के सत्ता प्रतिष्ठान का पूरी तरह से सहज होना अभी बाक़ी है।किसान आंदोलन के हो-हल्ले में इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया कि बाइडन की उपलब्धि पर भाजपा और संघ सहित राष्ट्रवादी संगठनों की तरफ़ से कोई भी उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं हुई है।संदेश ऐसा गया जैसे अमेरिका में वोटों की गिनती अभी पूरी ही नहीं हुई है।ऐसे मौक़ों पर मुखर रहने वाले लोगों के एक बड़े तबके ने भी , जिसमें विदेशी मामलों पर सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाले बुद्धिजीवी शामिल हैं , सन्नाटे का मास्क ताने रखा।माहौल कुछ ऐसा है जैसे तमाम पूजा - पाठों और हवन - यज्ञों के बावजूद अमेरिका में कोई अनहोनी घट गई जिसके कारण आने वाले सालों के लिए पहले से तय खेलों के मंडप बिगड़ गए हैं। क्या आश्चर्यजनक नहीं लगता कि महिला सश