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सिर्फ़   विशेष   सत्र   समाप्त   हुआ   है,   विशेष   एजेंडा   क़ायम   है  ? - श्रवण   गर्ग   इस   रहस्य   से   कभी   पर्दा   नहीं   उठ   पाएगा   कि   देश   और   दुनिया   भर   में   सनसनी   फैलाते   हुए   पाँच   दिन   के   लिए   संसद   का   विशेष   सत्र   क्यों   तो बुलाया  गया   और   फिर  उसे  चार   दिन   में   ही  क्यों  समेट   दिया   गया  !  पाँचवे   दिन   का   क्या   हुआ  ?  आशंकाएँ   तो   यही   थीं   कि   पूरा   सत्र   इतनी गर्माहट  से   भर   जाएगा   कि   उसे   आगे   बढ़ाना   पड़ेगा।   वैसा   कुछ   भी   नहीं   हुआ।   अंत   में   जो  नज़र  आया   वह   यही   था   कि   आक्रामक   विपक्ष   और जनता  का   मूड   भाँपते   हुए   सरकार   ने   अपने   अघोषित   एजेंडे   पर   रणनीतिक   रूप   से   पीछे   हटने   का   तय   कर   लिया। ऐसा   मान   लेने   में   कोई   हर्ज   नहीं   कि   संसद   की   पुरानी   इमारत   से   नये   भवन   में   प्रवेश   मात्र   से   प्रधानमंत्री   न   तो   ज़्यादा   लोकतांत्रिक   हो   गए और  न   ही   पवित्र   सेंगोल   की   उपस्थिति   में   उनका   कोई   हृदय   परिवर्तन   हो   गय