कब तक डर - डर कर जीना चाहता है देश ? - श्रवण गर्ग हमने इस बात पर शायद ही कभी गौर किया हो कि आपसी बातचीत या ‘ गोदी चैनलों ’ की बहसों को देखने - सुनने के दौरान हम दिन के कितने घंटे सिर्फ़ एक ही व्यक्ति यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पिछले दस सालों से खर्च कर रहे हैं ! हमें यह भी याद करके देखना चाहिए कि ऐसा हमने पिछली बार किस प्रधानमंत्री के लिए किया होगा कि साल भर तक सिर्फ़ उसके ही बारे में सोचते और उससे डरते रहे हों ! ऐसा सिर्फ़ अधिनायकवादी व्यवस्थाओं में ही होता है। हमें डरना चाहिए कि प्रधानमंत्री के इर्द - गिर्द एक ऐसा तंत्र विकसित हो गया है जिसने देश की एक बड़ी आबादी को सिर्फ़ मोदी की दैनंदिन की गतिविधियों और उनके व्यक्तित्व के दबदबे के साथ चौबीसों घंटों के लिए एंगेज कर रखा है। प्रधानमंत्री की उपस्थिति हवा- पानी की तरह
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