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  प्रधानमंत्री   के   अंदर   भी   झांकने   की   जरूरत   है  ! - श्रवण   गर्ग आज़ादी   के   बाद   की   स्मृतियों   में   अब   तक   के   सबसे   बड़े   नागरिक   संकट   के   बीच   प्रधानमंत्री   नरेंद्र   मोदी   भी   क्या   संवेदनात्मक   रूप   से   उतने   ही विचलित  हैं   जितने   कि   उनके   करोड़ों   देशवासी   हैं  ?  क्या   प्रधानमंत्री   के   चेहरे   पर   अथवा   उनकी   भाव - भंगिमा   में   ऐसा   कोई   आक्रोश   या पश्चाताप  नज़र   आता   है   कि   उनके   नेतृत्व   में   कहीं   कोई   बड़ी   चूक   हो   गई   है   जिसकी   क़ीमत   शवों   की   बढ़ती   हुई   संख्या   के   रूप   में नागरिक  श्मशान   घाटों   पर   चुका   रहे   हैं  ?  संसद   की   बैठकों   की   अनुपस्थिति   में   सरकार   के   ख़िलाफ़   निंदा   प्रस्ताव   पारित   करने के  आरोप   में   सजा   कितने   लोगों   को   दी   जा   सकेगी  ?  पूरे   देश   को   ही   जेलों   में   डालना   पड़ेगा  !  अभी   अस्पताल   छोटे   पड़   रहे   हैं   फिर   जेलें   कम पड़  जाएँगी  ! देश   को   पहली   बार   महसूस   हो   रहा   है   कि   प्रधानमंत्री   के   रूप