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Showing posts from November, 2020
  क्या  ‘ जंतर   मंतर  ‘ बन   पाएगा   नया   शाहीन   बाग़  ? - श्रवण   गर्ग कोरोना   के   आपातकाल   में   भी   दिल्ली   की   सीमाओं   पर   यह   जो   हलचल   हो   रही   है   क्या   वह   कुछ   अलग   नहीं   नज़र   आ   रही  ?  हज़ारों   लोग — जिनमें   बूढ़े   और   जवान  ,  पुरुष   और   महिलाएँ   सभी   शामिल   हैं — पुलिस   की   लाठियों  , अश्रु   गैस   के   गोलों   और   ठंडे   पानी   की   बौछारों   को ललकारते  और   लांघते   हुए   पंजाब ,  हरियाणा   और   अन्य   राज्यों   से   दिल्ली   पहुँच   रहे   हैं।उस   दिल्ली   में   जो   मुल्क   की   राजधानी   है ,  जहां   जो हुक्मरान  चले   गए   हैं   उनकी   बड़ी - बड़ी   समाधियाँ   हैं   और   जो   वर्तमान   में   क़ायम   हैं   उनकी   बड़ी - बड़ी   कोठियाँ   और   बंगले   हैं। कोरोना   के   कारण   पिछले   आठ   महीनों   से   जिस   सन्नाटे   के   साथ   करोड़ों   लोगों   के   जिस्मों   और   साँसों   को   बांध   दिया   गया   था   उसका   टूटना ज़रूरी  भी   हो   गया   था।लोग   लगातार   डरते   हुए   अपने   आप   में   ही   सिमटते   जा   रहे   थे।चेहरों   पर   म
  भाजपा   और   ओवैसी  :  दोनों   को   ही   अब   एक - दूसरे   की   ज़रूरत   बनी   रहेगी  ? -श्रवण गर्ग मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी देश की चुनावी राजनीति में जो कुछ भी कर रहे हैं वह यह कि लगातार संगठित और मज़बूत होते हिंदू राष्ट्रवाद के समानांतर अल्पसंख्यक स्वाभिमान और सुरक्षा का तेज़ी से ध्रुवीकरण कर रहे हैं।यह काम वे अत्यंत चतुराई के साथ संवैधानिक सीमाओं के भीतर कर रहे हैं। मुमकिन है उन्हें इस काम में कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के उन उन अल्पसंख्यक नेताओं का भी मौन समर्थन प्राप्त हो जिन्हें हिंदू राष्ट्रवाद की लहर के चलते इस समय हाशियों पर डाला जा रहा है।बिहार के चुनावों में जो कुछ प्रकट हुआ है उसके अनुसार ,ओवैसी का विरोध अब न सिर्फ़ भाजपा के हिंदुत्व तक ही सीमित है ,वे तथाकथित धर्म निरपेक्ष राजनीति को भी अल्पसंख्यक हितों के लिए ख़तरा मानते हैं।बिहार चुनाव में भाजपा के ख़िलाफ़ विपक्षी गठबंधन को समर्थन के सवाल पर वे इस तरह के विचार व्यक्त कर भी चुके हैं। पृथक पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना के अविभाजित भारत की राजनीति में उदय को लेकर जो आरोप तब कांग्रेस पर लगाए जाते रहे ह
  ओबामा   की   किताब   से   भी   मुद्दा  आख़िर तलाश  ही   लिया   गया  ! - श्रवण   गर्ग राहुल   गांधी   के   आलोचक   ऐसा   कोई   मौक़ा   नहीं   छोड़ते   कि   कैसे   कांग्रेस   के   इस   आक्रामक   नेता   को   विवादों   के   घेरे   में  लाया  जा   सके  !  कुछेक   बार   तो   राहुल   स्वयं  ही  आगे   होकर   अवसर   उपलब्ध   करा   देते   हैं  ( जैसे   अपनी   ही   सरकार   के   फ़ैसलों   से   सम्बंधित   काग़ज़ों   को सार्वजनिक  रूप   से   फाड़ना  )  पर   अधिकांशतः   आलोचक   ही   मौक़ों   को   अपनी   राजनीतिक   निष्ठाओं   के   हिसाब   से   तलाश   और   तराश   लेते हैं। राहुल   को   लेकर   ताज़ा   विवाद   अमेरिका   के   पूर्व   राष्ट्रपति   बराक   ओबामा   की   हाल   में   प्रकाशित  एक  किताब   को   लेकर   उत्पन्न   हुआ   है।अंग्रेज़ी  में   लिखी   गई  979  पृष्ठों   की   किताब  ‘ A Promised Land’  का   हिंदी  ( और   गुजराती  !)  में   अनुवाद   होकर   प्रकाशित   होना   बाक़ी   है। किताब   में   राहुल   गांधी   को   लेकर   कुल   जमा   छह   पंक्तियाँ   हैं।   ऐसा   लगता   है   कि   देश   भर   में   स