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Showing posts from November, 2024
  क्या पेट की ज़रूरत राहुल के लोकतंत्र पर भारी पड़ गई ? - श्रवण   गर्ग   महाराष्ट्र   चुनावों   में  ‘ महाविकास   अघाड़ी ’  की   चौंकानेवाली  ‘महा पराजय   और  ‘ महायुति ’  की  ‘ महाविजय ’  को   न   तो   भाजपा   ने   लोकतंत्र   की जीत   बताया   है   और   न   ही   कांग्रेस   ने   उसे   लोकतंत्र   को   एक   धक्के   के   रूप   में   व्यक्त   करने   का   साहस   दिखाया   है। कोई   भी   गठबंधन सामूहिक   रूप   से   मानने   को   तैयार   नहीं   है   कि  ‘ मुख्यमंत्री   माझी   लाडकी   बहिन   योजना ’  के   तहत   हर   माह   बाँटी   जाने   वाली   सिर्फ़   पंद्रह   सौ रुपए की   राशि   ने   इतना   बड़ा   उलटफेर   कर   दिया।   प्रधानमं...
  ‘क्यों जाना चाहते हो यात्रा पर तुम फिर भी .….?’ -श्रवण गर्ग  जिस रेगिस्तान की तलाश है तुम्हें  तुम्हारे भीतर ही बसा है ! मैं जानता हूँ  जाओगे फिर भी तलाश करने उसकी  भोगने चिलचिलाती धूप में उसे  नंगे पैरों से, नंगी आँखों से ! पार करोगे जैसे ही देहरी घर की तुम  छूटेगा सबसे पहले वह पहाड़  खेलते रहे हो गोद में जिसकी जीवन भर ! फिर करेगी पीछा तुम्हारा नदी ! छोड़ने जाएगी तुम्हें  आंसुओं की नाव लेकर  गाँव की सरहद तक ! घेर लेंगे फिर तुम्हें बड़े-घने जंगल हर दिशा से  चीरते हुए पसलियाँ तुम्हारी टकराने लगेंगे आकाश छूते पेड़ आपस में  देखकर तुमको अकेला ! भभकने लगेगी आग चारों तरफ़  तपने लगेगा जंगल तुम्हारी आत्मा का  याद आएगी तब नदी बहुत  छूटा हुआ पहाड़,घर की देहरी के पार ! जीना चाह रहे हो जो रेगिस्तान अपने में  समाया हुआ है भीतर ही तुम्हारे  पसरा हुआ है नदी के दोनों पाटों पर  क्यों जाना चाहते हो फिर भी यात्रा पर ! छोड़कर पहाड़ को यूँ अकेला ? पूछना तो तुम्हारा भी सही ही होगा : ‘कैसे खोजे गये होंगे रेगिस्तान...