राहुल की उपस्थिति देश को प्रजातंत्र का विनम्र आश्वासन है !
-श्रवण गर्ग
बराक ओबामा से अनुरोध किया जाना चाहिए कि कुछ दिनों के लिए एक बार फिर भारत की यात्रा पर आएँ यह देखने के लिए कि जिस राहुल गांधी से वे आख़िरी बार मिले होंगे वह और भारत पिछले आठ सालों में कितना बदल गया है ! अमेरिका वापस पहुँचने के बाद ओबामा एक नई किताब लिखें जो सिर्फ़ राहुल पर केंद्रित हो ! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘माय फ्रेंड बराक’ ने अपनी पिछली भारत यात्रा के बाद प्रकाशित किताब में जिस राहुल गांधी का ज़िक्र किया था उसका स्थान किसी नए राहुल ने ले लिया है और हो सकता है उसकी पूरी जानकारी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति को नहीं हो !
ओबामा भारत में सिर्फ़ डॉ मनमोहन सिंह के प्रशंसक रहे हैं। इतने घोर प्रशंसक कि अपने प्रथम कार्यकाल (2009-2013) में डॉ सिंहको अपना पहला राजकीय अतिथि बनाया। ‘व्हाइट हाउस’ के भव्य समारोह में ओबामा जब डॉ सिंह की तारीफ़ कर रहे थे पूरे अमेरिका और भारत भर से वाशिंगटन पहुँची बड़ी-बड़ी हस्तियां दोनों नेताओं को खड़े-खड़े सुन रहीं थीं। उस बात को गुज़रे डेढ़ दशक बीत गया।डॉ सिंह के साथ यात्रा पर गए पत्रकारों के दल के सदस्य के तौर पर मैं भी तब उपस्थित था।
कोई पाँच वर्ष पूर्व प्रकाशित अपनी चर्चित पुस्तक ‘ ए प्रॉमिस्ड लैंड’ में ओबामा ने राहुल गांधी को लेकर जो टिप्पणी की उसने मोदी सरकार के मंत्रियों, ‘गोदी मीडिया’ और भक्तों को इस युवा नेता पर हमले करने का हथियार सौंप दिया था। ओबामा ने किताब में उस रात्रि-भोज का ज़िक्र किया है जिसमें सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के साथ राहुल भी उपस्थित थे।
कोई 980 पन्नों की किताब में राहुल गांधी को लेकर की गई पाँच पंक्तियों की टिप्पणी इस प्रकार है : ‘……राहुल गांधी के बारे में यह कि वे स्मार्ट और जोशीले नज़र आए। उनका सुदर्शन व्यक्तित्व उनकी माँ के साथ मेल खाता था। बातचीत में उन्होंने राजनीति पर अपने प्रगतिशील विचार प्रस्तुत किए। वे बीच-बीच में मुझसे मेरी 2008 की चुनावी मुहिम की जानकारी भी लेते रहे पर नर्वस और अनाकार (अनफॉर्म्ड) भी नज़रआए। जैसे किसी छात्र ने या तो कौशल के अभाव या फिर विषय के प्रति गहरे अनुराग के बावजूद अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया हो पर वह टीचर को प्रभावित करना चाहता हो।’
किताब में लिखे को लेकर निहित स्वार्थों द्वारा बाद में जो प्रचारित किया गया वह इस प्रकार था :’उनमें एक ऐसे नर्वस और अपरिपक्व छात्र के गुण हैं जिसने अपना होमवर्क किया है और टीचर को इम्प्रेस करने की कोशिश में है लेकिन गहराई से देखें तो योग्यता और किसी विषय पर महारत हासिल करने के जुनून की कमी है।’
आज 19 जून को राहुल 55 साल के हो गए। ओबामा अगस्त में 65 के हो जाएँगे। ओबामा आख़िरी बार दिसंबर 2017 में भारत आए थे तब अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर ट्रम्प थे। पिछले आठ सालों में अमेरिका भी बदल गया है और भारत भी। भारत को बदलने में राहुल गांधी भी बड़ी भूमिका रही है। ओबामा को अपनी नई किताब में अब उस राहुल गांधी के बारे में लिखना पड़ेगा जिसमें न तो कौशल का अभाव है और जो न ही नर्वस है।
ओबामा चूँकि एक अश्वेत नेता और राष्ट्रपति रहे हैं उन्हें ज़्यादा जानकारी या तो महात्मा गांधी के 1930 के ‘दांडी मार्च’ की होगी या फिर मार्टिन लूथर किंग जूनियर के अगस्त 1963 के ऐतिहासिक ‘वाशिंगटन मार्च’ और 1965 के सेल्मा से मोंटगोमेरी (अल्बामा) तक चले 54 किलोमीटर लंबे मार्च की जो पाँच दिनों में पूरा हुआ था।
ओबामा को अपनी नई किताब में अब राहुल के सपनों के ‘प्रॉमिस्ड लैंड’ का ज़िक्र करना पड़ेगा। उन दो ऐतिहासिक यात्राओं के बारे में लिखना पड़ेगा जो हज़ारों किलोमीटर की थीं। इनमें एक पैदल चलकर पूरी की गई थी। कन्याकुमारी से कश्मीर तक। दूसरी बस के ज़रिए। मणिपुर से मुंबई तक।
ओबामा को उस राहुल गांधी के बारे में लिखना पड़ेगा जिसे देखने, सुनने और जिसका स्पर्श पाने के लिए हज़ारों लोग सड़कों के दोनों ओर घंटों तक खड़े रहते हैं। जिस राहुल ने जनता के साथ ही देश के बिखरे पड़े विपक्ष में भी नई जान फूंक दी है। देश की आत्मा को एक कर दिया है। जिसने साहसपूर्वक सत्ता को अधिनायकवाद की सीढ़ियाँ चढ़ने से रोक दिया है। ओबामा को लिखना पड़ेगा कि भारत में राहुल की उपस्थिति अधिनायकवाद के ख़िलाफ़ प्रजातंत्र का विनम्र आश्वासन है।
बहुत खूबसूरत लेख है।
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