अंजना की जगह कोई सत्ता-विरोधी एंकर-पत्रकार होता तो ?


-श्रवण गर्ग 


भारतीय विदेश सेवा की संयुक्त राष्ट्र संघ में कार्यरत युवा अधिकारी स्नेहा दुबे और ‘आजतक’ की एंकर-पत्रकार अंजना ओम् कश्यप के बीच हुए संवाद को लेकर सोशल मीडिया में चल रही पोस्ट्स को लेकर मेरे मन में दो बातें हैं :


पहली तो यह कि स्नेहा के साहस की सार्वजनिक रूप से जितनी तारीफ़ की जाएगीउसमें सबसे ज़्यादा नुक़सान भी इस युवा अधिकारी का ही होगाअंजना का नहीं।स्नेहा के सामने अभी लम्बा करियर बिताने को बचा है।राजनीतिक व्यवस्थाएँ व्यक्ति की उपयोगिता इस बातसे तय करतीं हैं कि विदेश में तैनात एक युवा अधिकारी की प्रतिभा की उसे परदेस में कितनी ज़रूरत पड़ सकती है और एक चर्चित टी वी एंकर का उसके लिए प्रतिदिन देस में कितना महत्व है। स्नेहा के साहस को लेकर की जा रही तारीफ़ में अंजना के प्रति आलोचकों के कतिपय पूर्वाग्रह भी काम कर रहे होंगे।अंजना के स्थान पर किसी सत्ता-विरोधी चैनल का कोई एंकर-पत्रकार होता तो ‘शायद’ स्नेहा की तारीफ़ का स्वर बदल जाता।


दूसरे यह कि संक्षिप्त सोशल मीडिया पोस्ट्स में स्नेहा का जो व्यवहार नज़र आता है उसमें हल्की सी मुस्कुराहट के साथ एक क़िस्म के विनम्र अहंकार और विजेता-भाव की झलक दिखाई पड़ती है।स्नेहा अगर चाहतीं तो अंजना को औपचारिक स्नेह के साथ बैठकर बात करने की पेशकश करतीं और बाद में सुझाव देतीं कि कैमरा बंद कर दिया जाए  बाद में वे विनम्र भाव से हम सब की बग़ैर जानकारी के उन्हें कह देतीं कि वे अपने सेवा नियमों से बंधीं हुई हैं और कुछ भी कहने में असमर्थ हैं।अपने उच्चाधिकारियों की पूर्व-अनुमति के स्नेहा कुछ कह देतीं तो अंजना के नम्बर चाहे बढ़ जाते ,उनकी न्यूयॉर्क में नियुक्ति प्रधानमंत्री की नई दिल्ली वापसी के पहले ही ख़तरे में पड़ जाती।

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