‘राहुल की दशा’ से बीजेपी को बिहार में कौन बचाएगा ?
-श्रवण गर्ग
बिहार की सड़कों पर इस समय जो प्रकट हो रहा है वह सिर्फ़ राहुल गांधी के प्रति समर्थन नहीं है ! हज़ारों-लाखों की संख्या में वे जो हाड़-मांस राहुल की जय-जयकार करते दिखाई दे रहे हैं वे हक़ीक़त में दिल्ली की सत्ता के ख़िलाफ़ उस नाराज़गी को ज़ुबान दे रहे हैं जो पिछले ग्यारह सालों से ख़ौफ़ के पहरों में क़ैद थी।सब्र की कोसी का कोई बांध जैसे भर-भराकर टूट पड़ रहा हो ! पहले जनता डरी हुई थी। अब हुकूमत डर रही है ! डर सत्ता के नुमाइंदों की बौखलाहट में उनके चेहरों पर नज़र भी आ रहा है ।प्रधानमंत्री का विपक्ष के प्रति कोप उसी बौखलाहट की सामूहिक अभिव्यक्ति है।
मुझे याद है बिहार में इस समय जो दिख रहा है वैसे दृश्य पचास साल पहले नज़र आते थे।बिहार के छात्र आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में आह्वान करते नज़र आते थे ‘सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है’ ! उस समय लालू यादव जेपी के साथ थे आज उनके बेटे तेजस्वी राहुल के साथ हैं और गद्दी छोड़ने को लेकर नारा बदल गया है।
सत्रह अगस्त से प्रारंभ हुई राहुल की सोलह दिनों की यात्रा की तुलना उन्हीं की उस दूसरी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा‘ से की जानी चाहिए जो सिर्फ़ डेढ़ साल पहले मकर संक्रांति के दिन मणिपुर के थोउबल से प्रारंभ होकर बिहार के इन्हीं इलाक़ों से गुजरी थी। राहुल की उक्त यात्रा की समाप्ति के लगभग ढाई महीने बाद ही मोदीजी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। समय गवाह है कि सिर्फ़ सवा साल में दोनों की लोकप्रियता के बीच आकाश-पाताल का अंतर पैदा हो गया। जनता पूछने लगी है कि क्या ये मोदीजी वे ही हैं जिन्हें देश ने ग्यारह साल पहले पहली बार प्रधानमंत्री चुना था ? क्या ये राहुल वे ही हैं जिन्हें सत्तारूढ़ दल के प्रचार तंत्र ने षड्यंत्रपूर्वक ‘पप्पू’ घोषित कर दिया था ?
राहुल की उस दूसरी यात्रा के दौरान जो भीड़ सड़कों पर उमड़ी थी और जो आज दिखाई पड़ रही है उसके संकेत यही हैं कि मोदीजी की लोकप्रियता उतनी कम हो गई है जितनी पिछले डेढ़ साल में राहुल की बढ़ गई है।अपनी पहली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में राहुल जिन-जिन रास्तों से होकर गुजरे थे,पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनावों में उन इलाक़ों में पड़ने वाली सीटों से कर्नाटक में बीजेपी और तेलंगाना में बीआरएस का सफ़ाया हो गया।
राहुल की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ पटना में समापन तक तेरह सौ किलोमीटर की दूरी तय कर लेगी। इस यात्रा में राहुल बिहार के तेईस महत्वपूर्ण ज़िलों की पचास विधानसभा सीटों की जनता के साथ सीधे संपर्क में आने वाले हैं। बाबू जगजीवन राम के संसदीय क्षेत्र सासाराम से सत्रह अगस्त को प्रारंभ कर राहुल ने अब तक जिन भी इलाक़ों को पार किया है वहाँ-वहाँ विपक्षी महागठबंधन के प्रति समर्थन का तूफ़ान आ गया है। पिछले चुनावों (2020) में यात्रा-मार्ग की पचास विधानसभा सीटों में से महागठबंधन को इक्कीस सीटें ही प्राप्त हुईं थीं। इनमें राष्ट्रीय जनता दल को बारह और कांग्रेस को सात मिलीं थी। उल्लेखनीय यह है कि पिछले चुनाव में नीतीश के नेतृत्व वाले एनडीए को 125 और तेजवी के महागठबंधन को 110 सीटें हासिल हुईं थी। यानी फ़र्क़ ज़्यादा नहीं था।
राहुल की आँधी को रोकने का अब एक ही उपाय बचा है कि ‘अघोषित आपातकाल’ को ‘घोषित आपातकाल’ में बदल दिया जाए। संविधान संशोधन विधेयक पर फूटा विपक्ष का ग़ुस्सा बताता है मोदीजी उस अवसर को अब चूक चुके हैं। मोदीजी की लोकसभा और अमित शाह की राज्यसभा में मौजूदगी के दौरान जिस तरह के नारे लगाए गए आज़ाद भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ।
लालक़िले की प्राचीर से संघ की शरण में जाने की घोषणा संकेत है कि मोदीजी के नेतृत्व में सरकार इस समय गहरे संकट में है ! क्या संघ मोदीजी को ‘राहुल की दशा’ से मुक्ति दिलाने में मदद करेगा ? पिछले साल लोकसभा चुनावों में हुए सफ़ाए के बाद भी क्या संघ अपने शताब्दी वर्ष में मोदी के नेतृत्व को लेकर कोई जोखिम लेने को तैयार हो जाएगा ? भागवत को अनुमान होना चाहिए कि राहुल की यात्रा के बाद अगर संघ ने बिहार चुनावों के कोई हाथ डाला तो पराजय का ठीकरा नागपुर के सिर पर ही फूटने वाला है ! बिहार संघ के सपनों का महाराष्ट्र नहीं है ! हक़ीक़त यह भी है कि राहुल को लेकर जितना भय बीजेपी में है उससे अधिक संघ में है !
श्रवण जी जिसे पप्पू बनाने मेंकरोडों रूपये मोदी सरकार ने खर्च किये थे वही पप्पू पास हो गया है और जनक्रान्ति का महानायक बन चुका है,बारिश हो या आन्धी नहीं रूकेगा राहुलगान्धी ,वोट चोर गददी छोड ,जय भारत ,जय संविधान,जय जनता जनार्दन
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