एग्जिट पोल ही ‘परिणाम’ हैं तो 2024 के लिए भी मोदी को बधाई !
-श्रवण गर्ग
यूपी के नतीजे किस करवट बैठने वाले हैं? अपनी विश्वसनीयता को लेकर हर चुनाव के दौरान विवादों में घिरे रहने वाले एग्जिट पोल ही अगर दस मार्च की शाम तक अंतिम रूप से भी सही साबित होने वाले हैं तो फिर नरेंद्र मोदी को 2024 में भी 2014 और 2019 जैसी ही जीत दोहराने के लिए अग्रिम बधाई अभी से दे देनी चाहिए। मान लिया जाना चाहिए कि जो तमाम सदृश्य और अदृश्य ताक़तें यूपी में संघ और भाजपा के बुलडोज़री-हिंदुत्व को फिर फिर सत्ता में ला रही हैं वे ही लोकसभा के लिए भी अपनी दोगुना शक्ति और संसाधनों के साथ दिल्ली-मिशन में जुटने वाली हैं।
कोई तो अज्ञात कारण अवश्य होना चाहिए कि इतनी ज़बरदस्त एंटी-इंकम्बेन्सी के बावजूद अमित शाह , जे पी नड्डा और योगी आदित्यनाथ सभी का सार्वजनिक रूप से यही दावा क़ायम है कि सरकार तो भाजपा की ही बनेगी। बलिया ज़िले के एक थाना प्रभारी ने तो एक बड़े भाजपा नेता को कथित रूप से कैबिनेट मंत्री बनने की अग्रिम शुभकामनाएँ भी दे दीं। लखनऊ में अफ़सरों के बंगलों के रंग फिर से भगवा होना शुरू हो गए होंगे।अखिलेश के सत्ता में आने के यूपी के देसी पत्रकारों के दावों को चुनौती देते हुए अंग्रेज़ी के नामी-गिरामी जर्नलिस्ट राजदीप सरदेसाई ने तो एग्जिट पोल के पहले ही लिख दिया था कि भाजपा की जीत साफ़ दिखाई पड़ रही है। उन्होंने उसके कारण भी गिनाए हैं। बड़े पत्रकार अपनी बात पुख़्ता सूत्रों के आधार पर ही करते हैं इसलिए राजदीप के दावे में कुछ सच्चाई ज़रूर होगी ऐसा दस मार्च तक के लिए माना जा सकता है।
एग्जिट पोल्स के दावों के विपरीत जो लोग अखिलेश यादव की जीत का सट्टा लगा रहे हैं उनके पास भी अपने कुछ तर्क हैं। मसलन, प.बंगाल के बाद से भाजपा ज़्यादातर चुनाव हार ही रही है। उसके जीतने का सिलसिला काफ़ी पहले से बंद हो चुका है। एग्जिट पोल्सके अनुमानों के ख़िलाफ़, पश्चिम बंगाल में हुई करारी हार के बाद पिछले साल के अंत में हिमाचल सहित दस राज्यों के उपचुनावों में भाजपा को अपनी पहले जीती हुई कुछ सीटें भी उस कांग्रेस के हवाले करना पड़ीं थीं जिसे वह ख़त्म करने का दावा आये दिन करती रहती है। एनडीए के बचे-खुचे घटक दल भी एक-एक करके भाजपा का साथ छोड़ रहे हैं। मुमकिन है बिहार वाले ‘सुशासन बाबू’ भी दस मार्च की प्रतीक्षा कर रहे हों।
सपा के पक्ष में सटोरियों के उत्साह का दूसरा बड़ा कारण अखिलेश-प्रियंका की रैलियों में भीड़ और मोदी-शाह-योगी की सभाओं में कुर्सियों का ख़ाली नज़र आना बताया गया है। कहा जा रहा है कि पश्चिमी यूपी में मुसलिमों और जाटों के बीच खून ख़राबे का सफलतापूर्वक आज़माया जा चुका प्रयोग इस बार काठ की हांडी साबित हो गया। महंगाई, बेरोज़गारी और कोरोना से मौतों को लेकर लोगों की नाराज़गी चरम सीमा पर है। पूछा जा रहा है कि अपने कामों को लेकर भाजपा अगर इतनी ही आश्वस्त थी तो यूक्रेन सहित सारे ज़रूरी काम ताक पर रखकर पीएम को बनारस में तीन दिन क्यों गुज़ारना पड़ गए? क्या उन्हें डर पैदा हो गया था कि अपने संसदीय क्षेत्र की कुछ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा या उन पर जीत का मार्जिन कम हो गया तो उसे उनकी लोकप्रियता के ग्राफ़ से जोड़ लिया जाएगा?
कोई छुपी हुई बात नहीं है कि यूपी में चुनाव के सातों चरणों के दौरान भाजपा को जिस तरह के जन-विरोध की लहर का सामना करना पड़ा पार्टी उसके लिए वह क़तई तैयार नहीं थी। पार्टी अपने इस भय को भी ख़ारिज नहीं कर सकती कि एग्जिट पोल्स के दावों के विपरीत अगर सरकार नहीं बनी तो जिस तरह के दल-बदल का ( स्वामीप्रसाद मौर्य, ओम् प्रकाश राजभर ,दारासिंह चौहान,आदि) उसे चुनाव के पहले सामना करना पड़ा था उससे कहीं और बड़ा पश्चिम बंगाल की तर्ज़ पर यूपी में झेलना पड़ जाएगा। प.बंगाल की भगदड़ का असर चाहे कहीं और नहीं हुआ हो, यूपी का असर उन सब हिंदी-भाषी राज्यों पर पड़ेगा, जहां 2024 के पहले चुनाव होने हैं। लोकसभा के पहले ग्यारह राज्यों में विधानसभा चुनाव होना हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा में एक ‘साइलेंट मायनोरिटी’ ऐसी भी है जो ‘पार्टी’ को 2024 में जिताने के लिए ‘व्यक्तियों’ के कमजोर होने को ज़रूरी मानती है। इस मायनोरिटी के अनुसार, यूपी में पार्टी की हार लोकसभा के लिए अहंकार-मुक्त नेतृत्व प्रदान करने का काम भी कर सकती है। यूपी में एग्जिट पोल्स के अनुमान सही साबित होने की स्थिति में विपक्ष तो निराश- हताश होगा ही, भाजपा के कई दिग्गजो को मार्गदर्शक मंडल में जाना पड़ सकता है।
वोटिंग मशीनों में अंतिम समय पर ( मूर्तियों के दूध पीने वाले चमत्कार की तरह ) कोई आसमानी-सुलतानी नहीं हो जाए तो ज़मीनी नतीजों का रुझान तो इस समय भाजपा के ख़िलाफ़ जाने का ही है। इसके बावजूद, ज़्यादा अंदरूनी जानकारी उन अनुभवी पत्रकारों, चुनावी-विश्लेषकों और टी वी एंकरों को ही हो सकती है जो डंके की चोट मुनादी कर रहे हैं कि जीत तो भाजपा की ही होने जा रही है।
यूपी में सत्तारूढ़ भाजपा के ख़िलाफ़ बेहद प्रतिकूल मौजूदा परिस्थितियों के बावजूद अगर सपा गठबंधन स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने से चूक जाता है तो फिर आगे आने वाले समय में यूपी और देश में विपक्ष की राजनीति का चेहरा कैसा बनेगा उसकी भी कल्पना की जा सकती है। उसमें यह भी शामिल रहेगा कि मोदी को फिर 2024 में दुनिया की कोई भी ताक़त नहीं रोक पाएगी । यूपी की जनता अगर ऐसा ही चाहती तो उसके फैसले पर पूरे देश की प्रतिक्रिया जानने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा की जानी चाहिए।
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ReplyDeleteIf the Election Commission will get the results of fair elections done properly, then the Samajwadi Party government will be formed, no doubt 100% 👍
पश्चिम बंगाल में ममता ने एक काम यह भी किया था कि EVM की सुरक्षा में अपने कार्यकर्ताओं को लगा दिया था। उनका खाना पीना सारी व्यवस्था खुद देख रही थीं। राज्य पुलिस को भी सख्त निर्देश दे रखे थे। अब उत्तर प्रदेश में यह जिम्मेदारी अखिलेश पर है क्योंकि मायावती तो B टीम जे रूप में नज़र आ रही हैं और कांग्रेस के पास संगठन नहीं है।
ReplyDeleteमाननीय, आप कल सत्या.काम पर कह रहे थे कि सपा कुल १०५ सीटें ५००० से कम अंतर से हारी है. उम्मीद है आपने तथ्यों को जाँच की होगी. आपकी जानकारी के लिए, केवल ५२ सीटों का फैसला ५००० से कम में हुआ था जिसमें से २८ पर भाजपा और २२ पर सपा जीती है. क्या सत्य कहना आपकी जिम्मेदारी नहीं है?
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