इस दौरान : मेरी एक नई कविता 


कई जगहों का नाम हो गया है देश !


-श्रवण गर्ग 


नहीं रुकना है अब हमें 

किसी एक जगह 

है ज़रूरी बस चलते जाना 

जिस ज़मीन पर टिके रहते थे 

पैर किसी वक्त 

बिछ गए हैं लाल क़ालीन वहाँ 

बुना है जिन्हें हमारे अतीत ने 

पिताओं के पुण्य ने हमारे 

नहीं है ज़मीन अब पैरों तले

उनके भी और हमारे भी 

ज़मीन के ऊपर खड़े हैं 

बिना ज़मीन के पैरों तले

खिसक रहा है देश भी 

ज़मीन के साथ-साथ 


नहीं रहा देश किसी एक जगह 

कई जगहों का नाम हो गया है देश

मसलन गुजरातयूपी ,असमआदि !

ये सब जगहें देश हैं भीतर देश के 

व्याप रहा है देशदेश की दिशाओं में 


नहीं रह गया है ज़रूरी 

नागरिकों का नागरिक होना 

नागरिक माँगने लगते हैं 

हाथ ,पैर और ज़मीन 

उठाने लगते हैं झंडे हाथों में 

पूछने लगते हैं देश का पता 

नहीं बचा है किसी के पास 

किसी का भी पता 

खुश होना चाहिए हमें 

देख रहे हैं हम अपने  होने को 

अपनी ही आँखों के सामने !


नहीं मचेगी अब जल्दी कोई 

लौटकर जाने की कहीं 

 करनी होगी प्रतीक्षा 

बसंत के आने की 

हो जाएँगे जिस जगह हम खड़े 

आना होगा बसंत को अब वहीं !




Comments

  1. नहीं रह गया जरूरी नागरिकों का नागरिक होना....... अच्छा लिखा है यथार्थ है

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog