‘सीट नंबर 11-A’
-श्रवण गर्ग
वह शख़्स जो बैठा हुआ था
सीट नंबर पर 11-A पर हाल तक
क्यों रो रहा है इस तरह
होकर तार-तार ,लगातार !
कौन सा दुख है जो साल रहा है उसे ?
मौत को मात देकर भी ख़ुश नहीं है वह !
खामोश क्यों नहीं है हुकूमत की तरह ?
साध लेती है जैसे चुप्पी
हरेक हादसे के बाद
बुझी हुई राख की तरह !
क्या किया जाएगा अब उस सीट का ?
निकाला जाएगा कि नहीं
मलबे के ढेर से बाहर ?
फोरेंसिक जांच के लिए !
बेचने के लिए नीलामी में !
बनाने के लिए कोई स्मारक
दिलाने यकीन कि नहीं हो जाता खत्म
सबकुछ एक हादसे में !
बच जाता है एक इंसान, एक सीट !
हो सकता है डर रहे हों हुक्म के ताबेदार
मौजूदगी से उस बेजान सीट की !
उस पर लिपटी राख से !
फिर सवाल यह भी तो है !
कैसे चल पाएगा पता,
कहाँ होगी वह एक सीट इतने विशाल मलबे में ?
क्या बचा भी पाई होगी वह अपने आपको ?
एक बेजान सीट को बचाया जाना
वैसे भी ज़रूरी नहीं !
पूछने लगेगा तब अवाम मुल्क का !
हुकूमतें बदली नहीं जा सकतीं आसानी से
क्या नहीं किया जा सकता बस इतना भर !
कर दिया जाए हरेक इंसान का नंबर 11-A ?
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