इस दौरान : मेरी एक नई कविता 


ख़त्म सिर्फ़ युद्धविराम होता है ! युद्ध नहीं !


-श्रवण गर्ग 


युद्धों,लड़ाइयों का चलते रहना ज़रूरी है !

मर जाते हैं जब हज़ारों,लाखों एक साथ 

नहीं लिखाना पड़ती कोई एफ़आईआर 

नहीं जोड़ना पड़ते हाथ किसी माई-बाप के

या देना पड़ती घूस थानेदारों को 

निपट जाती हैं सारी हत्याएँ एक रपट में !


गिरतीं हैं जब मिसाइलें अस्पतालों,बस्तियों पर

नहीं करना पड़ता इंतज़ाम हुकूमत को 

नक़ली दवाओं, इंजेक्शनों,ऑक्सीजन का 

बच जाता है ख़ज़ाना सारा 

सड़कों-पुलों को गिराकर फिर से बनाने के लिए !


चलती हैं जब लड़ाइयाँ युद्धविरामों में बदलने तक 

लगती हैं उजड़ने बस्तियाँ,गाँव और शहर 

बच जाता है अनाज बाँटा जाना है जो मुफ़्त में 

ज़िंदा रखने निर्जीव शरीरों को 

ज़रूरत ही नहीं पड़ती जिनकी हुकूमतों को कभी !


हो जाती हैं ध्वस्त जब इमारतें बमों के हमलों में 

कर दिए जाते हैं तबाह स्कूल, अस्पताल, बस्तियाँ 

मिलने लगता है काम नया ठेकेदारों,दलालों को 

बसाने नए शहर, करने खड़े नए वैभवी मॉल !


मरते जाते हैं लोग जैसे-जैसे,घटने लगती है आबादी 

होता जाता है काम भी कम-कम तानाशाहों का

देने सज़ाएँ, यातनाएँ बच गए बेगुनाहों को 

किसी अगली लड़ाई के प्रारंभ होने तक के लिए !


स्कूल,अस्पताल,चलते-फिरते इंसानों की बस्तियाँ 

घुटने लगता है दम इन सबसे हुक्मरानों का 

ज़िंदा रखने के लिए उन्हें युद्ध का जारी रहना ज़रूरी है !

ख़त्म होता नहीं कोई युद्ध कभी ! ख़त्म सिर्फ़ युद्धविराम होता है  !



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