लोकनायक’ जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर :


क्या राहुल गांधी जेपी को पसंद नहीं करते ?


-श्रवण गर्ग 


बिहार में परिवर्तन की जो आँधी इस समय चल रही है उसमें उस ‘संपूर्ण क्रांति’ की झलक तलाश की जा सकती है जो 1974 में ‘लोकनायक’ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुई थी और जिसके परिणामस्वरूप 1977 में आज़ादी के बाद पहली बार केंद्र में एक ग़ैर-कांग्रेसी सरकार की स्थापना हुई थी ! 


एक बड़ा फ़र्क़ तब और अब में यह है कि उस समय जो राजनीतिक सत्ता यानी सत्तारूढ़ कांग्रेस खलनायक के रूप में मौजूद थी वह इस समय राहुल की अगुवाई में नायकत्व की भूमिका में है ! जिन सांप्रदायिक तत्वों यानी तब जनसंघ और आरएसएस ने अपने राजनीतिक हितों के लिए जेपी के 1974 के छात्र-आंदोलन पर क़ब्ज़ा कर लिया था वे इस समय खलनायकों के रोल में हैं।


राहुल की उम्र उस समय चार-पाँच साल की रही होगी। राजीव गांधी और सोनिया गांधी तब सत्ता की राजनीति से कोसों दूर थे।दिल्ली में सत्ता के सारे सूत्र संजय गांधी और उनकी अतिविश्वस्त ‘कोटरी’ के हाथों में थे।


जेपी के साथ 1972 में हुए चंबल घाटी के ऐतिहासिक दस्यु आत्म-समर्पण के समय से जुड़े होने के कारण मैं बिहार आंदोलन के दौरान भी ‘लोकनायक’ के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था। बिहार चुनावों को लेकर यूट्यूब चैनलों पर होने वाली बहसों के माध्यम से और राहुल गांधी की टीम से नज़दीक से जुड़े एक सांसद के ज़रिए राहुल तक एक संदेश पहुँचाने की कोशिश मैंने पिछले दिनों की थी। 


राहुल गांधी तक संदेश यह पहुँचवाना था कि उन्होंने युवा शक्ति के माध्यम से मोदी की हुकूमत के ख़िलाफ़ लड़ाई की शुरुआत बिहार की क्रांति-उर्वरा धरती से की है। इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ जेपी की ‘संपूर्ण क्रांति’ में लालू प्रसाद यादव प्रमुख छात्र नेता थे। राहुल की लड़ाई में उनके प्रमुख सहयोगी लालू के बेटे तेजस्वी यादव हैं। राहुल के समर्थन में बिहार के युवा भी उसी तरह से समर्पित हैं जिस तरह 1974 में जेपी के प्रति थे। 


राहुल गांधी पटना सहित बिहार के अन्य स्थानों की यात्राएँ लगातार कर रहे हैं।उनकी ऐतिहासिक ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का समापन भी पटना में ही हुआ था। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया ब्लॉक’ की पहली बैठक भी पटना में ही हुई थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस बैठक के आयोजक थे। केजरीवाल भी उस बैठक में उपस्थित थे। बाद में ‘इंडिया ब्लॉक’ को धोखा देकर बीजेपी से हाथ मिला लिया। 


मेरा सुझाव यह था कि राहुल अपनी किसी पटना यात्रा के दौरान अगर जेपी के ‘कदम कुआँ’ स्थित निवास स्थान पहुँचकर ‘संपूर्ण क्रांति’ के नायक को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर देंगे तो उसका संदेश बिहार के गाँव-गाँव तक पहुँच जाएगा। बिहार के संवेदनशील युवाओं के साथ राहुल का बांड और मज़बूत हो जाएगा। केंद्र की वर्तमान ग़ैर-कांग्रेसी सरकार हालाँकि जेपी के उसी ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन की देन है पर नरेंद्र मोदी,अमित शाह और जेपी नड्डा से इस तरह की कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती !


आश्चर्य नहीं हुआ कि राहुल गांधी की ओर से सुझाव को गौर करने योग्य नहीं समझा गया। मैं यह भी मानने को तैयार हूँ कि संदेश उन तक नहीं पहुँच पाया होगा। इस तरह का विचार तो राहुल या उनकी टीम के लोगों के मन में स्वतः भी  सकता था। राहुल बिना किसी पूर्व-घोषणा और मर्ज़ी से अलग-अलग जगहों पर जाते रहते हैं। लोगों से मिलते हैंउन्हें गले लगाते रहते हैं ! बिहार में युवा क्रांति की अगुवाई कर ‘जननायक’ बनने वाले नेता को तो अपनी पहली ही पटना यात्रा में कदम कुँआ के ठिकाने की याद आ जानी चाहिये थी ! अगर नहीं आई तो दिलाई भी जा सकती थी !


मैं जिस पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहता हूँ वह यह है कि राहुल गांधी को ग़ुस्सा भी आता है और उनकी ही पार्टी और सहयोगी दलों के नेता उनसे ख़ौफ़ भी खाते हैं।संपूर्ण क्रांति’ के लोकनायक जेपी का अगर राहुल ने पटना में स्मरण नहीं किया तो उसमें उनकी चुनावी स्ट्रेटेजी की कमी भी तलाशी जा सकती है ! आश्चर्य ही व्यक्त किया जा सकता है कि 1974 के आंदोलन की ही उपज लालू यादव के प्रति अगर राहुल के मन में इतना सम्मान है तो जेपी के प्रति उसका चुनावी-प्रदर्शन भी क्यों नहीं हो सकता ? 




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