‘नोबेल पुरस्कार’ ट्रम्प को भी तो दिया जा सकता था ?
-श्रवण गर्ग
नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में नोबेल कमेटी द्वारा दस अक्टूबर को की गई घोषणा के कई दिन पूर्व मिलिट्री कमांडरों के साथ हुई एक बैठक के दौरान पत्रकारों ने राष्ट्रपति ट्रम्प की दुखती रग पर हाथ रखते हुए पूछ लिया था कि क्या ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ आपको ही मिलेगा ? ट्रम्प ने जवाब दिया था कि पुरस्कार किसी ऐसे व्यक्ति को मिलेगा जिसका कोई योगदान नहीं है। ट्रम्प ने आगे यह भी जोड़ा था कि अगर पुरस्कार उन्हें नहीं मिला तो वह अमेरिका की बेइज़्ज़ती होगी।
अमेरिकी राष्ट्रपति का भय सही भी साबित हो गया। पुरस्कार वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरीना मचाडो को मिल गया। ट्रम्प की ओर से जारी तात्कालिक प्रतिक्रिया में ‘व्हाइट हाउस’ के एक प्रवक्ता ने कहा था कि नोबेल कमेटी ने ‘पीस’ के बजाय ‘पॉलिटिक्स’ को महत्व दिया। हालाँकि ट्रम्प जब अपने प्रारंभिक सदमे से उबर गए तो उन्होंने मारिया की तारीफ़ भी की और उन्हें बधाई भी दी। हाल ही में ट्रम्प ने यह भी कह दिया कि उनकी तो कोई लालसा ही नहीं थी।
दूसरी ओर, सम्मान से अभिभूत मारिया ने अपना पुरस्कार वेनेज़ुएला की जनता की यातनाओं और ट्रम्प को समर्पित कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि वेनेज़ुएला की हुकूमत की तानाशाही के ख़िलाफ़ लड़ाई में उन्हें ट्रम्प और अमेरिका की बहुत ज़रूरत है।
दुनिया की एक बड़ी आबादी और कई हुकूमतें जो ट्रम्प को पसंद नहीं करतीं उन्हें निश्चित ही प्रसन्नता हुई होगी कि पुरस्कार अमेरिकी राष्ट्रपति को नहीं मिला। विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी सहित अमेरिका में एक बड़ी नागरिक जमात ने ट्रम्प की निराशा में राहत की सांस ली होगी। दुनिया और भारत में एक समूह ऐसा भी है जो ट्रम्प के पुरस्कृत हो जाने से और ज़्यादा बौखला जाता क्योंकि उसने मारिया के ख़िलाफ़ ही सोशल मीडिया पर बड़ी मुहिम छेड़ रखी है।
इस समूह के द्वारा कहा जा रहा है कि मारिया हक़ीक़त में वाशिंगटन की सत्ता की ही नुमाइंदगी करने वाला वह मुस्कुराता चेहरा है जो सरकारें गिराने की मशीन का काम करता है। नागरिकों के उत्पीड़न की क़ीमत पर आर्थिक प्रतिबंध,निजीकरण की वकालात और अपनी लड़ाई में विदेशी हस्तक्षेप की माँग करता है। इस समूह के अनुसार, मारिया ने बेंजामिन नेतन्याहु से अपील की थी कि इज़राइल बमों का इस्तेमाल करके वेनेज़ुएला को आज़ादी दिलाए !
इसके विपरीत, नोबेल कमेटी ने मारिया की प्रशस्ति में कहा कि जब सत्ता हिंसा और भय का इस्तेमाल करके जनता को कुचलने लगती है तो मारिया जैसे लोगों को सम्मानित करना ज़रूरी हो जाता है।
‘व्हाइट हाउस’ के इस आरोप की अगर ईमानदारी से समीक्षा करें कि नोबेल कमेटी ने अपने निर्णय में ‘पीस’ के बजाय ‘पॉलिटिक्स’ को चुना तो उसमें ट्रम्प की इस पीड़ा को पढ़ा जा सकता है कि दुनिया में जगह-जगह चल रहे युद्धों को समाप्त कर वहाँ शांति स्थापित करने के अपने सारे प्रयास उन्होंने पुरस्कार मिलने की उम्मीद में ही झोंके थे।नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ट्रम्प पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की तुलना में स्वयं को अधिक योग्य मानते रहे हैं।
इज़राइली संसद में सोमवार को अपने भाषण के दौरान ट्रम्प द्वारा हाल में किए गए इस दावे को कैसे चुनौती दी जा सकेगी कि मध्य-पूर्व में इज़राइल और हमास के बीच लड़ाई की समाप्ति पूरी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी घटना है ? ट्रम्प ने भाषण में कहा : ‘आकाश अब शांत है ! बंदूकें मौन हैं ! सायरन थम गए है ! और ईश्वर की उस पवित्र भूमि पर सूर्य का उदय हुआ है जहाँ अब पूर्ण शांति है !’
क्या ट्रम्प के दबाव के बिना लड़ाई का ख़त्म होना संभव होता ? पिछले दो सालों या 737 दिनों की लड़ाई के दौरान कोई सत्तर हज़ार फ़िलिस्तीनी लोगों की जानें गई। मरने वालों में एक-तिहाई संख्या बच्चों की है। इज़राइल के भी हज़ारों लोग और सैनिक मारे गए।ट्रम्प के बीस-सूत्रीय ग़ज़ा समझौते के बाद ही संभव हो सका कि इज़राइल की क़ैद से दो हज़ार फ़िलिस्तीनियों को रिहा किया गया। हमास द्वारा भी जीवित बचे बीस इज़राइली बंधक मुक्त कर दिए गए।
मारिया को मिले नोबेल शांति पुरस्कार के प्रति व्यक्त की जा रही नाराज़गी इस भय का मुक़ाबला कैसे करेगी कि अपेक्षित सम्मान प्राप्त न होने से निराश ट्रम्प अपने शांति प्रयासों को बंद भी कर सकते हैं। ट्रम्प पहले यूक्रेन की लड़ाई ख़त्म कराने की बात कर रहे थे और अब झेलेंस्की को रूस के ख़िलाफ़ इस्तेमाल के लिये अत्याधुनिक Tomahawk क्रूज़ मिसाइलें देने की बात कर रहे हैं।
ट्रम्प ने न सिर्फ़ चीन के राष्ट्रपति के साथ प्रस्तावित मुलाक़ात रद्द कर दी है, बीजिंग पर सौ प्रतिशत की नई टैरिफ़ भी थोप दी है। पुतिन के प्रति उनकी नाराज़गी बढ़ती जा रही है। ट्रम्प कई बार दावा कर चुके हैं कि अपने दो कार्यकालों में आठ युद्धों को रुकवाया है और उनमें हाल का भारत-पाकिस्तान संघर्ष भी शामिल है। हालाँकि भारत ने ट्रम्प के दावे को स्वीकार नहीं किया है।
मारिया को पुरस्कार की घोषणा के बाद ‘व्हाइट हाउस’ ने दुनिया को आश्वस्त ज़रूर किया है कि राष्ट्रपति ट्रम्प अपने शांति प्रयासों को जारी रखेंगे जिससे कि लोगों की जानें बचाई जा सके।’उनका हृदय मानवीयता से भरा हुआ है और उनके जैसा कोई और नहीं है !’
शांति पुरस्कार प्रदान करने के पीछे नोबेल कमेटी का उद्देश्य अगर दुनिया को युद्धों से मुक्त कर शांति-प्रयासों को बढ़ावा देना ही है तो जिज्ञासा व्यक्त की जा सकती है कि इस बार का सम्मान मारिया के बजाय ट्रम्प को क्यों नहीं दिया जा सकता था ? मारिया का पुरस्कार अगले किसी साल के लिए स्थगित किया जा सकता था। ग़ज़ा के विध्वंस को बढ़ने से रोकने में जो भूमिका ट्रम्प ने निबाही वैसी मारिया इसलिए नहीं निभा सकतीं थीं कि वेनेज़ुएला की आज़ादी के लिये वे कथित तौर पर बेंजामिन नेतन्याहु की बमबारी को आमंत्रित कर रहीं थीं ! यानी वे दक्षिण अमेरिका में भी किसी नए ग़ज़ा को बनते-उजड़ते देखना चाहती थीं।
जहां तक नोबेल पुरस्कार कमेटी की निष्पक्षता का सवाल है उसने न तो कभी महात्मा गांधी को इस सम्मान के योग्य समझा और न उनके प्रथम सत्याग्रही शिष्य आचार्य विनोबा भावे को ! भारत को आज़ादी दिलाने वाली अहिंसक जन-क्रांति और दान में प्राप्त करोड़ों एकड़ ज़मीन के वितरण के ज़रिए करोड़ों भूमिहीनों के जीवन में समृद्धि लाने वाली ‘भूदान’ क्रांति—दोनों में उक्त दोनों महानायकों की भूमिकाएँ दुनिया भर में अद्वितीय रही है।
ट्रम्प जो कर रहे हैं वह इस मायने में ज़्यादा चमत्कारी है कि एक राष्ट्रपति अपने ख़ुद के मुल्क में तो नागरिक आज़ादी पर प्रहार कर रहा है, विपक्षी डेमोक्रेटिक राज्यों के गवर्नरों के साथ युद्ध लड़ते हुए उनके यहाँ ‘नेशनल गार्ड’ भिजवा रहा है और नोबेल पुरस्कार हासिल करने के लिए दुनिया भर में लड़ाइयाँ रुकवा रहा है !
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