मोदी ट्रम्प से डरते हैं या नहीं ? संकेत तो ऐसे ही नज़र आते हैं ?
-श्रवण गर्ग
राहुल गांधी के इस आरोप का कि मोदी राष्ट्रपति ट्रम्प से ख़ौफ़ खाते हैं जवाब आश्चर्यजनक रूप से अमेरिका की मशहूर सिंगर मेरी मिलबेन ने दिया है। कथित तौर पर ‘मोदी-भक्त’ मेरी ने दावा किया है कि भारत के प्रधानमंत्री ट्रम्प से डरते नहीं हैं। ट्रम्प को लेकर मोदी की ‘कूटनीति’ ‘रणनीतिक’ है। वे कहती हैं जिस तरह ट्रम्प के लिए अमेरिकी हित सर्वोपरि हैं वैसा ही मोदी के लिए भारत के संबंध में है।
मोदी के ट्रम्प से ख़ौफ़ खाने को लेकर राहुल ने पाँच बातें गिनाई हैं : भारत अपना तेल रूस से नहीं ख़रीदें ऐसा ट्रम्प तय करते हैं ; बार-बार झिड़के जाने के बावजूद उन्हें बधाई संदेश भेजते रहते हैं; वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन की अमेरिका यात्रा रद्द कर दी गई; ग़ज़ा को लेकर ट्रम्प की उपस्थिति में शरमल शेख (मिस्र) में हुई महत्वपूर्ण बैठक में नहीं गए; और यह कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान हुए सीजफायर पर ट्रम्प द्वारा किए जाने वाले दावों का कभी खंडन नहीं किया !
देश की जनता जो समझ नहीं पा रही है वह यह है कि प्रधानमंत्री ट्रम्प के साथ लड़ना भी नहीं चाहते और अमेरिकी राष्ट्रपति से आँखें मिलाने से कतरा भी रहे हैं ! ट्रम्प जनवरी 2029 तक सत्ता में बने रहने वाले हैं। मोदी का तीसरा कार्यकाल भी मई-जून 2029 तक चलने वाला है। 2029 में बड़ा फ़र्क़ यही होने वाला है कि ट्रम्प को तो आगे चुनाव नहीं लड़ना पर जो चल रहा है वैसा ही चलता रहा तो अमेरिकी राष्ट्रपति जाते-जाते चौथी बार पीएम बनने का मोदी का गणित उलट सकते हैं।
मोदी के संदर्भ में ट्रम्प द्वारा की गई यह रहस्यमय टिप्पणी चर्चा का विषय बनी रहेगी कि वे (ट्रम्प) उनका( पीएम का) पोलिटिकल करियर तबाह नहीं करना चाहते ! समझ से परे है कि ट्रम्प ने ऐसी बात किस संदर्भ में कही होगी और यह भी कि इतनी गंभीर टिप्पणी पर भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं व्यक्त की गई ? हालाँकि अगली ही साँस में ट्रम्प ने यह भी जोड़ दिया कि ‘मोदी इज ए ग्रेटमेन। द इण्डियन लीडर लव्ड हिम।’
ट्रम्प और मोदी के बीच कथित तौर पर चल रही ‘लव-हेट रिलेशनशिप’ को लेकर अब कोई एक कारण नहीं गिनाया जा सकता । ट्रम्प का दबाव स्वीकार करते हुए भारत अगर रूस से तेल ख़रीदना बंद कर दे तब भी सबकुछ ठीक होने वाला नहीं है ! ट्रम्प की माँगों के ख़िलाफ़ मोदी इतना आगे बढ़ चुके हैं कि चाहें तो भी पीछे नहीं लौट सकते। यूक्रेन युद्ध को लेकर ट्रम्प और पुतिन के बीच रिश्ते ठीक हो जाएँ (दोनों नेताओं के बीच हंगरी में बातचीत होने के संकेत मिल रहे हैं ) तब भी नहीं !
चर्चा नहीं हो रही है कि भारत,अमेरिका,जापान और ऑस्ट्रेलिया को लेकर भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए चीन के ख़िलाफ़ बना महत्वपूर्ण संगठन QUAD( quadrilateral security dialogue) अनौपचारिक रूप से ख़त्म हुआ समझा जा रहा है। संगठन की शीर्ष वार्ता साल के अंत में भारत की मेज़बानी में प्रस्तावित थी और ट्रम्प नई दिल्ली की यात्रा पर आने वाले थे। वार्ता अब नहीं होगी। यानी भारत ऐसी किसी भीगतिविधि का हिस्सा नहीं बनना चाहेगा जो चीन के ख़िलाफ़ हो।भारत ‘क्वाड’ के दो सदस्य देशों जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय आधार पर समझौते कर रहा है।
बीस देशों के संगठन BRICS को भी ट्रम्प अमेरिकी वर्चस्व के लिए चुनौती मानते हैं। भारत उसका प्रमुख सदस्य है और अगले साल जनवरी में उसकी अध्यक्षता सम्भालने वाला है। भारत और चीन दोनों ब्रिक्स देश रूस से ख़रीदे जाने वाले तेल का भुगतान युवान और रूबल में कर रहे हैं। ट्रम्प ब्रिक्स को कमज़ोर करना चाहते हैं। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति के साथ हाल की चर्चा में ट्रम्प ने ब्रिक्स संगठन को डॉलर के ख़िलाफ़ हमला बताया।ट्रम्प शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में मोदी की बढ़ती रुचि और नेतृत्व को लेकर भी नाराज़ हैं।
ट्रम्प ने अफ़ग़ानिस्तान से माँग की है कि उनके सैनिकों की तैनाती के लिए वह उसे बगराम एयरबेस वापस लौटा दे जिसे 2021 मेंअमेरिकी फ़ौजों की अफ़ग़ानिस्तान से वापसी के दौरान ख़ाली कर दिया गया था। भारत भी अब अफ़ग़ानिस्तान, चीन, रूस आदि देशों के साथ ट्रम्प की माँग के विरोध में साथ खड़ा हो गया है।
जो मोदी पिछले एक दशक के दौरान हर दूसरे महीने विदेश यात्रा पर बने रहते थे अगस्त माह में चीन के तियानजिन में हुई SCO की बैठक के बाद से लगभग देश में ही बने हुए हैं। वे न सिर्फ़ शरमल शेख ही नहीं गए, संयुक्त राष्ट्र महासभा की वार्षिक बैठक में भाषण देने न्यूयार्क भी नहीं पहुँचे। इस बात के भी कोई संकेत नहीं हैं कि मोदी 26 से 28 अक्टूबर तक मलेशिया में हो रही ASEAN देशों की शीर्ष बैठक में भाग लेने जाएँगे। ट्रम्प उसमें भाग ले सकते हैं।
देश की जनता जो बात नोट नहीं कर रही है वह यह है कि जिस प्रधानमंत्री को वह अपने बीच शारीरिक रूप से उपस्थित देखते हुए भी लगातार अनुपस्थित और विचलित पा रही है वह उस मोदी से पूरी तरह भिन्न है जिसे उसने 2014 में नेतृत्व सौंपा था। ऐसा पहली बार हो रहा है कि देश में सत्ता सुरक्षित रखने के लिए भी बैसाखियों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सहारे तलाश करना पड़ रहे हैं ! ऐसे में यह कौन तय करेगा कि मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति से ख़ौफ़ खा रहे हैं या नहीं ? राहुल गांधी,अमेरिकी सिंगर मिलबेन या देश की देश की जनता ?
Comments
Post a Comment